Thursday 9 February 2017

Kuch is ada se aaj vo pahlu-nashīñ rahe / कुछ इस अदा से आज वो पहलू-नशीं रहे

कुछ इस अदा से आज वो पहलू-नशीं रहे
जब तक हमारे पास रहे हम नहीं रहे

(पहलू-नशीं = बगल में बैठे)

ईमान-ओ-कुफ़्र और न दुनिया-ओ-दीं रहे
ऐ इश्क़-ए-शाद-बाश कि तन्हा हमीं रहे

(ईमान-ओ-कुफ़्र = धर्म-अधर्म), (दुनिया-ओ-दीं = दुनिया और धर्म), (शाद-बाश = प्रसन्न रहो)

आलम जब एक हाल पे क़ायम नहीं रहे
क्या ख़ाक ए'तिबार-ए-निगाह-ए-यक़ीं रहे

(आलम = दशा, हालत, दुनिया, संसार), (क़ायम = स्थिर, निश्चित, ठहरा हुआ),

मेरी ज़बाँ पे शिकवा-ए-दर्द आफ़रीं रहे
शायद मिरे हवास ठिकाने नहीं रहे

(शिकवा-ए-दर्द = दर्द की शिकायत), (आफ़रीं = प्रशंसनीय)

जब तक इलाही जिस्म में जान-ए-हज़ीं रहे
नज़रें मिरी जवान रहें दिल हसीं रहे

(जान-ए-हज़ीं = दुखी/ चिंतित जान)

या-रब किसी के राज़-ए-मोहब्बत की ख़ैर हो
दस्त-ए-जुनूँ रहे न रहे आस्तीं रहे

(दस्त-ए-जुनूँ = उन्माद का हाथ), (आस्तीं = आस्तीन)

ता-चंद जोश-ए-इश्क़ में दिल की हिफ़ाज़तें
मेरी बला से अब वो जुनूनी कहीं रहे

(ता-चंद = कब तक)

जा और कोई ज़ब्त की दुनिया तलाश कर
ऐ इश्क़ हम तो अब तिरे क़ाबिल नहीं रहे

(ज़ब्त = सहनशीलता)

मुझ को नहीं क़ुबूल दो-आलम की वुसअतें
क़िस्मत में कू-ए-यार की दो-गज़ ज़मीं रहे

(दो-आलम = दोनों लोकों की), (वुसअतें = विशालताएँ), (कू-ए-यार = प्रेयसी की गली)

ऐ इश्क़-ए-नाला-कश तिरी ग़ैरत को क्या हुआ
है है अरक़ अरक़ वो तन-ए-नाज़नीं रहे

(इश्क़-ए-नाला-कश = फ़रियाद/ रुदन करने वाला प्यार), (है है = हाँ हाँ), (अरक़ = पसीना, रस), (तन-ए-नाज़नीं = प्रेमिका का कोमल बदन)

दर्द-ओ-ग़म-ए-फ़िराक के ये सख़्त मरहले
हैराँ हूँ मैं कि फिर भी तुम इतने हसीं रहे

(दर्द-ओ-ग़म-ए-फ़िराक = विरह वेदना, जुदाई का दुःख और दर्द), (मरहले = ठिकाने, मंज़िलें, पड़ाव)

अल्लाह-रे चश्म-ए-यार की मोजिज़-बयानियाँ
हर इक को है गुमाँ कि मुख़ातिब हमीं रहे

(चश्म-ए-यार = प्रियतम की आँखें), (मोजिज़-बयानियाँ = जादुई वर्णन)

ज़ालिम उठा तू पर्दा-ए-वहम-ओ-गुमान-ओ-फ़िक्र
क्या सामने वो मरहला-हाए-यक़ीं रहे

ज़ात-ओ-सिफ़ात-ए-हुस्न का आलम नज़र में है
महदूद-ए-सज्दा क्या मिरा ज़ौक़-ए-जबीं रहे

(ज़ात-ओ-सिफ़ात-ए-हुस्न = आस्तित्व और गुणों की सुंदरता), (आलम = दशा, हालत, दुनिया, संसार), (महदूद-ए-सज्दा = सर झुकाने की सीमितता), (ज़ौक़-ए-जबीं = सर झुकाने का आनंद)

किस दर्द से किसी ने कहा आज बज़्म में
अच्छा ये है वो नंग-ए-मोहब्बत यहीं रहे

(बज़्म = महफ़िल, सभा), (नंग-ए-मोहब्बत = मोहब्बत की प्रतिष्ठा, ख्याति, मान, साख)

सर-दादगान-ए-इश्क़-ओ-मोहब्बत की क्या कमी
क़ातिल की तेग़ तेज़ ख़ुदा की ज़मीं रहे

(सर-दादगान-ए-इश्क़-ओ-मोहब्बत = प्यार में बलिदान देने वाले), (तेग़ = तलवार)

इस इश्क़ की तलाफ़ी-ए-माफ़ात देखना
रोने की हसरतें हैं जब आँसू नहीं रहे

 (तलाफ़ी-ए-माफ़ात = गलतियाँ सुधारना)

-जिगर मुरादाबादी





Kuch is adā se aaj vo pahlū-nashīñ rahe
jab tak hamāre paas rahe ham nahīñ rahe

īmān-o-kufr aur na duniyā-o-dīñ rahe
ai ishq-e-shād-bāsh ki tanhā hamīñ rahe

aalam jab ek haal pe qaa.em nahīñ rahe
kyā ḳhaak e'tibār-e-nigāh-e-yaqīn rahe

merī zabāñ pe shikva-e-dard-āfrīñ rahe
shāyad mire havās Thikāne nahīñ rahe

jab tak ilāhī jism meñ jān-e-hazīñ rahe
nazreñ mirī javān raheñ dil hasīñ rahe

yā-rab kisī ke rāz-e-mohabbat kī ḳhair ho
dast-e-junūñ rahe na rahe āstīñ rahe

tā-chand josh-e-ishq meñ dil kī hifāzateñ
merī balā se ab vo junūnī kahīñ rahe

jā aur koī zabt kī duniyā talāsh kar
ai ishq ham to ab tire qābil nahīñ rahe

mujh ko nahīñ qubūl do-ālam kī vus.ateñ
qismat meñ kū-e-yār kī do-gaz zamīñ rahe

ai ishq-e-nālā-kash tirī ġhairat ko kyā huā
hai hai araq araq vo tan-e-nāznīñ rahe

dard-o-ġham-e-firāq ke ye saḳht marhale
hairāñ huuñ maiñ ki phir bhī tum itne hasīñ rahe

allāh-re chashm-e-yār kī mojiz-bayāniyāñ
har ik ko hai gumāñ ki muḳhātib hamīñ rahe

zālim uThā tū parda-e-vahm-o-gumān-o-fikr
kyā sāmne vo marhala-hā-e-yaqīñ rahe

zāt-o-sifāt-e-husn kā aalam nazar meñ hai
mahdūd-e-sajda kyā mirā zauq-e-jabīñ rahe

kis dard se kisī ne kahā aaj bazm meñ
achchhā ye hai vo nañg-e-mohabbat yahīñ rahe

sar-dādgān-e-ishq-o-mohabbat kī kyā kamī
qātil kī teġh tez ḳhudā kī zamīñ rahe

is ishq kī talāfi-e-māfāt dekhnā
rone kī hasrateñ haiñ jab aañsū nahīñ rahe

Jigar Moradabadi

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