Friday 21 October 2016

Har ek ranj mein raahat hai aadami ke liye/ हर एक रंज में राहत है आदमी के लिये

हर एक रंज में राहत है आदमी के लिये
पयाम-ए-मौत भी मुज़दा है ज़िंदगी के लिये

(रंज = कष्ट, दुःख, आघात, पीड़ा), (पयाम-ए-मौत = मृत्यु का सन्देश), (मुजदा = अच्छी ख़बर, शुभ संवाद)

मैं सोचता हूँ के दुनिया को क्या हुआ या रब
किसी के दिल में मुहब्बत नहीं किसी के लिये

चमन में फूल भी हर एक को नहीं मिलते
बहार आती है लेकिन किसी किसी के लिये

हमारे बाद अँधेरा रहेगा महफ़िल में
बहुत चराग़ जलाओगे रोशनी के लिये

हमारी ख़ाक को दामन से झाड़ने वाले
सब इस मक़ाम से गुज़रेंगे ज़िंदगी के लिये

उन्हीं के शीशा-ए-दिल चूर चूर हो के रहें
तरस रहे थे जो दुनिया में दोस्ती के लिये

-मख़मूर देहलवी

इसी ग़ज़ल के कुछ और अश'आर:

जो काम आये मेरी ज़िन्दगी तेरे हमदम
तो छोड़ देंगे दुनिया तेरी ख़ुशी के लिए

किसी ने दाग़ दिए दोस्ती के दामन पर
किसी ने जान भी लुटा दी दोस्ती के लिए



Har ek ranj mein raahat hai aadami ke liye
Payaam-e-maut bhi muzdaa hai zindagi ke liye

Main sochta hoon ke duniya ko kya hua ya rab
Kisi ke dil mein mohabbat nahi kisi ke liya

Chaman mein phool bhi har ek ko nahi milate
Bahaar aati hai lekin kisi kisi ke liye

Hamaare baad andhera rahega mehfil mein
Bahut charaag jalaoge roshani ke liye

Hamaari khaaq ko daaman se jhaadne wale
Sab is maqaam se guzarenge zindagi ke liye

Unhi ke seesha-e-dil choor-choor hoke rahe
Taras rahe they jo duniya mein dosti ke liye

-Makhmoor Dehlvi

4 comments:

  1. शायर-मखमूर देहलवी

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  2. कुछ और अशआर इस ग़ज़ल के-


    हमारी खाक़ को दामन से झाड़ने वाले,
    सब इसी मक़ाम से गुजरेंगे ज़िन्दगी के लिए..

    उन्ही के शीशा-ए-दिल चूर चूर हो रहे है,
    तरस रहे थे जो दुनिया में दोस्ती के लिए..

    जो काम आये मेरी ज़िन्दगी तेरे हमदम,
    तो छोड़ देंगे दुनिया तेरी ख़ुशी के लिए..

    किसी ने दाग़ दिए दोस्ती के दामन पर,
    किसी ने जान भी लुटा दी दोस्ती के लिए..

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  3. यह ग़ज़ल संत मस्कीन जी की लिखी है, जनाब मख़मूर देहलवी की नहीं।

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    1. Sukhwinder Singh जी, शुरुआती दिनों में जगजीत जी ये ग़ज़ल महफिलों में गाते थे,उन्होंने ने EP के रूप एक एलबम कंपोज़ किया था जिसे राजेन्द्र मेहता जी से गवाया था,4 ग़ज़लों के इस एल्बम में ये ग़ज़ल राजेन्द्र मेहता ने गाई है,उस EP पर शायर मख़मूर देहलवी है।

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