Sunday 17 May 2015

Andeshe/ अन्देशे

रूह बेचैन है इक दिल की अज़ीयत क्या है
दिल ही शोला है तो ये सोज़-ए-मोहब्बत क्या है
वो मुझे भूल गई इसकी शिकायत क्या है
रंज तो ये है के रो-रो के भुलाया होगा

(अज़ीयत = व्यथा, यातना), (सोज़-ए-मोहब्बत = प्रेम को आँच (पीड़ा))

वो कहाँ और कहाँ क़ाहिश-ए-ग़म सोज़िश-ए-जाँ
उस की रंगीन नज़र और नुक़ूश-ए-हिरमाँ
उस का एहसास-ए-लतीफ़ और शिकस्त-ए-अरमाँ
तानाज़न एक ज़माना नज़र आया होगा

(क़ाहिश-ए-ग़म = दुःख की कमी), (सोज़िश-ए-जाँ = जान का जलना), (नुक़ूश-ए-हिरमाँ = निराशा के चिन्ह), (एहसास-ए-लतीफ़ = कोमल भावनाएं), (शिकस्त-ए-अरमाँ = अभिलाषाओं का भंग होना), (तानाज़न = व्यंग करता हुआ)


झुक गई होगी जवाँ-साल उमंगों की जबीं
मिट गई होगी ललक डूब गया होगा यक़ीं
छा गया होगा धुआँ घूम गई होगी ज़मीं
अपने पहले ही घरोंदे को जो ढाया होगा

(जवाँ-साल = नयी), (जबीं = माथा)

दिल ने ऐसे भी कुछ अफ़साने सुनाये होंगे
अश्क आँखों ने पिये और न बहाये होंगे
बन्द कमरे में जो ख़त मेरे जलाये होंगे
इक-इक हर्फ़ जबीं पर उभर आया होगा

(अफ़साने = कहानियाँ), (अश्क = आँसू), (हर्फ़ = अक्षर), (जबीं = माथा)

उस ने घबरा के नज़र लाख बचाई होगी
मिट के इक नक़्श ने सौ शक़्ल दिखाई होगी
मेज़ से जब मेरी तस्वीर हटाई होगी
हर तरफ़ मुझ को तड़पता हुआ पाया होगा

(नक़्श = आकृति)

बे-महल छेड़ पे जज़्बात उबल आये होंगे
ग़म पशेमाँ तबस्सुम में ढल आये होंगे
नाम पर मेरे जब आँसू निकल आये होंगे
सर न काँधे से सहेली के उठाया होगा

(बे-महल = बे-मौका, अनुचित समय पर), (पशेमाँ = लज्जित), (तबस्सुम = मुस्कराहट)


ज़ुल्फ़ ज़िद कर के किसी ने जो बनाई होगी
रूठे जलवों पे ख़िज़ाँ और भी छाई होगी
बर्क़ अश्वों ने कई दिन न गिराई होगी
रंग चेहरे पे कई रोज़ न आया होगा

(ख़िज़ाँ = पतझड़), (बर्क़ = बिजली), (अश्वों = हाव-भाव)

होके मजबूर मुझे उस ने भुलाया होगा
ज़हर चुपके से दवा जान के ख़ाया होगा

-कैफ़ी आज़मी

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