Friday 27 March 2015

Chalo ek baar fir se ajnabi ban jaayen hum dono/ चलो एक बार फिर से अजनबी बन जाएँ हम दोनों

चलो एक बार फिर से अजनबी बन जाएँ हम दोनों

न मैं तुम से कोई उम्मीद रखूँ दिलनवाज़ी की
न तुम मेरी तरफ़ देखो ग़लत अन्दाज़ नज़रों से
न मेरे दिल की धड़कन लड़खड़ाए मेरी बातों से
न ज़ाहिर हो तुम्हारी कशमकश का राज़ नज़रों से

तुम्हें भी कोई उलझन रोकती है पेशक़दमी से
मुझे भी लोग कहते हैं ये जलवे पराए हैं
मेरे हमराह भी रुसवाइयाँ हैं मेरे माज़ी की
तुम्हारे साथ भी गुज़री हुई रातों के साए हैं

(रुसवाइयाँ = बदनामियाँ), (माज़ी = बीता हुआ समय),

तआर्रुफ़ रोग हो जाये तो उसको भूलना बेहतर
ताल्लुक बोझ बन जाये तो उसको तोड़ना अच्छा
वो अफ़साना जिसे अंजाम तक लाना ना हो मुमकिन
उसे इक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा

(तआर्रुफ़ = परिचय)

चलो एक बार फिर से अजनबी बन जाएँ हम दोनों

-साहिर लुधियानवी


https://www.youtube.com/watch?v=wEMkkwT0l80
 

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