Thursday 29 January 2015

Ye kaisi aazaadi hai/ ये कैसी आज़ादी है

ये कैसी आज़ादी है
चंद घराने छोड़ के भूखी नंगी हर आबादी है

जितना देश तुम्हारा है ये उतना देश हमारा है
दलित महिला आदिवासी सबने इसे सँवारा है
ऐसा क्यों है कहीं ख़ुशी है और कहीं बर्बादी है
ये कैसी आज़ादी है

अंधियारों से बाहर निकलो अपनी शक्ति जानो तुम
दया धरम की भीख न मांगो हक़ अपना पहचानो तुम
अन्याय के आगे जो झुक जाए वो अपराधी है
ये कैसी आज़ादी है

जिन हाथों में काम नहीं है उन हाथों को काम भी दो
मजदूरी करने वालों को मजदूरी के दाम भी दो
बूढ़े होते हाथ पाँव को जीने का आराम भी दो
दौलत के हर बटवारे में मेहनतकश का नाम भी दो
झूठों के दरबार में अब तक सच्चाई फ़रियादी है
ये कैसी आज़ादी है

-निदा फ़ाज़ली




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