Thursday 29 January 2015

Tum poocho aur main na bataun aise to halaat nahin/ तुम पूछो और मैं न बताऊं ऐसे तो हालात नहीं

तुम पूछो और मैं न बताऊं ऐसे तो हालात नहीं
एक ज़रा सा दिल टूटा है और तो कोई बात नहीं

टूट गया जब दिल तो फिर ये सांस का नग़मा क्या मानी
गूँज रही है क्यूँ शहनाई जब कोई बारात नहीं

किस को ख़बर थी काले बादल बिन बरसे रह जाते हैं
सावन आया लेकिन अपनी क़िस्मत में बरसात नहीं

मेरे गम़गीं होने पर अहबाब हैं यों हैरान ‘क़तील’
जैसे मैं पत्थर हूं मेरे सीने में जज़्बात नहीं

(ग़म़गीं = दुखी, उदास), (अहबाब = दोस्त, मित्र)

-क़तील शिफाई



इसी ग़ज़ल के कुछ और अश'आर:

ग़म के अन्धियारे में तुझको अपना साथी क्यूँ समझूँ 
तू फिर तू है, मेरा तो साया भी मेरे साथ नहीं 

माना जीवन में औरत एक बार मोहब्बत करती है,
लेकिन मुझको ये तो बता दे क्या तू औरत ज़ात नहीं

ख़त्म हुआ मेरा अफ़साना अब ये आंसू पोंछ भी लो
जिस में कोई तारा चमके आज की रात वो रात नहीं



Tum poocho aur main na bataun aise to halaat nahin
Ek zara sa dil toota hai aur to koi bat nahin

Toot gayaa jab dil to phir ye saans ka nagmaa kya maani
Goonj rahi hai kyon shahnaai jab koi baraat nahi

Kis ko khabar thi sanwale badal bin barse ud jate hain
Sawan aya lekin apni qismat mein barsat nahin

Mere gam-geen hone par ahbab hain yon hairan 'Qateel'
Jaise main patthar hoon mere seene mein jazbat nahin

-Qateel Shifai

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