Saturday 24 January 2015

Shaam-e-gham kuch us nigaah-e-naaz ki baaten karo/ शाम-ए-ग़म कुछ उस निगाह-ए-नाज़ की बातें करो

शाम-ए-ग़म कुछ उस निगाह-ए-नाज़ की बातें करो
बेख़ुदी बढ़ती चली है राज़ की बातें करो

ये सुकूत-ए-नाज़ ये दिल की रगों का टूटना
ख़ामोशी में कुछ शिकस्त-ए-साज़ की बातें करो

(सुकूत-ए-नाज़ = प्रेमिका की ख़ामोशी), (शिकस्त-ए-साज़ = टूटा वाद्य यंत्र)

निकहत-ए-ज़ुल्फ़-ए-परीशाँ दास्तान-ए-शाम-ए-ग़म
सुबह होने तक इसी अंदाज़ की बातें करो

(निकहत-ए-ज़ुल्फ़-ए-परीशाँ = बिखरे हुए केशों की सुगन्ध)

हर रग-ए-दिल वज्द में आती रहे दिखती रहे
यूँ ही उसके जा-वो-बेजा नाज़ की बातें करो

(वज्द = भावविभोरता, आनंदातिरेक से झूमने वाला)

जो अदम की जान है जो है पयाम-ए-ज़िन्दगी
उस सुकूत-ए-राज़ उस आवाज़ की बातें करो

(पयाम-ए-ज़िन्दगी = ज़िन्दगी का सन्देश), (सुकूत-ए-राज़ = ख़ामोश भेद, छुपा हुआ भेद)

इश्क़ रुसवा हो चला बेकैफ़ सा बेज़ार सा
आज उसी नर्गिस-ए-ग़म्माज़ की बातें करो

(रुसवा = बदनाम), (बेकैफ़ = दुखी), (बेज़ार = नाराज़, अप्रसन्न), (नर्गिस-ए-ग़म्माज़ = निंदा करने वाली प्रेमिका)

नाम भी लेना है जिसका इक जहान-ए-रंग-ओ-बू
दोस्तों उस नौ-बहार-ए-नाज़ की बातें करो

किस लिए उज्र-ए-तग़ाफ़ुल किस लिए इल्ज़ाम-ए-इश्क़
आज चर्ख़-ए-तफ़्रिक़ा पर्दाज़ की बातें करो

(उज्र-ए-तग़ाफ़ुल = उपेक्षा से आपत्ति), (चर्ख़-ए-तफ़्रिक़ा पर्दाज़ = भेद डाल देने वाला आकाश)

कुछ क़फ़स की तीलियों से छन रहा है नूर सा
कुछ फ़िज़ा, कुछ हसरत-ए-परवाज़ की बातें करो

(क़फ़स = पिंजरा), (फ़िज़ा = वातावरण), (हसरत-ए-परवाज़ = उड़ने की कामना)

जो हयात-ए-जाविदाँ है जो है मर्ग-ए-नागहाँ
आज कुछ उस नाज़ उस अंदाज़ की बातें करो

(हयात-ए-जाविदाँ = अमर जीवन, शाश्वत जीवन), (मर्ग-ए-नागहाँ = अचानक आने वाली मौत)


इश्क़-ए-बेपरवा भी अब कुछ नाशकेबा हो चला
शोख़ी-ए-हुस्न-ए-करिश्मा-साज़ की बातें करो

(नाशकेबा = अधीर, बेसब्र)

जिसकी फ़ुरक़त ने पलट दी इश्क़ की काया 'फ़िराक़'
आज उसी ईसा-नफ़स दमसाज़ की बातें करो

(फ़ुरक़त = जुदाई), (ईसा-नफ़स = ईसा मसीह की फूँक जिससे मुर्दे जी उठते थे, जीवन दाता), (दमसाज़ = मित्र, दोस्त)

-फ़िराक़ गोरखपुरी

                                                                 Singer: Vinod Sehgal


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