Friday 16 January 2015

Na kisi ki aankh ka noor hoon na kisi ke dil ka qarar hoon/ न किसी की आँख का नूर हूँ न किसी के दिल का क़रार हूँ

न किसी की आँख का नूर हूँ न किसी के दिल का क़रार हूँ
जो किसी के काम न आ सके मैं वो एक मुश्‍त-ए-गुब़ार हूँ

(मुश्‍त-ए-गुब़ार = एक मुट्ठी धूल)

न तो मैं किसी का हबीब  हूँ न तो मैं किसी का रक़ीब हूँ
जो बिगड़ गया वो नसीब हूँ जो उजड़ गया वो दयार हूँ

(रक़ीब = प्रेमिका का दूसरा प्रेमी, प्रेमक्षेत्र का प्रतिद्वंदी), (हबीब = मित्र, दोस्त, प्रिय)

मेरा रंग रूप बिगड़ गया मेरा यार मुझ से बिछड़ गया
जो चमन ख़िज़ाँ से उजड़ गया मैं उसी की फ़स्ल-ए-बहार हूँ

(ख़िज़ाँ = पतझड़)

मैं नहीं हूँ नग़मा-ए-जाँफ़िज़ा मुझे सुन के कोई करेगा क्या
मैं बड़े से रोग की हूँ सदा किसी दिलजले की पुकार हूँ

(नग़मा-ए-जाँफ़िज़ा = प्राणवर्धक/ आयुर्वर्धक गीत), (सदा = आवाज़)

पए फ़ातिहा कोई आए क्यूँ कोई चार फूल चढ़ाए क्यूँ
कोई आ के शम्मा जलाए क्यूँ मैं वो बेकसी का मज़ार हूँ

(बेकसी = दुःख, कष्ट, बेबसी, विवशता)

न मैं ‘मुज़्तर’ उन का हबीब हूँ न मैं ‘मुज़्तर’ उन का रक़ीब हूँ
जो बिगड़ गया वो नसीब हूँ जो उजड़ गया वा दयार हूँ


-मुज़्तर खैराबादी



Na kisi ki aankh ka noor hoon na kisi ke dil ka qarar hoon
Jo kisi ke kaam na aa sake main wo ek mushth-e-gubaar hoon

Na to main kisi ka habib hoon na to main kisi ka rakib hoon
Jo bigad gaya wo nasib hoon jo ujad gaya wo dayaar hoon

Mera rang roop bigad gaya mera yaar mujhse bichhad gaya
Jo chaman fiza se ujad gaya main usi ki fasl-e-bahaar hoon

Main nahi hoon nagma-e-jaanfizaa mujhe sun ke koi karega kya
Main bade se rog ki hoon sadaa kisi diljale ki pukaar hoon

Pay fatiha koi aaye kyon Koi char phool chadhaye kyon
Koi aake shamma jalaye kyon main wo bekasi ka majar hoon

-Muztar Khairabadi

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