Sunday 18 January 2015

Kisi ko de ke dil koi nawaa sanj-e-fughaan kyon ho/ किसी को दे के दिल कोई नवा संज-ए-फ़ुग़ाँ क्यों हो

तुम जानो, तुम को ग़ैर से जो रस्म-ओ-राह हो
मुझ को भी पूछ्ते रहो, तो क्या गुनाह हो

(रस्म-ओ-राह = व्यवहार, मेल-जोल)


किसी को दे के दिल कोई नवा संज-ए-फ़ुग़ाँ क्यों हो
न हो जब दिल ही सीने में तो फिर मुँह में ज़ुबाँ क्यों हो

(नवा संज-ए-फ़ुग़ाँ = आर्तनाद का स्वर पैदा करने वाला)

वफ़ा कैसी? कहाँ का इश्क़? जब सर फोड़ना ठहरा
तो फिर, ऐ संग दिल, तेरा ही संग-ए-आस्ताँ क्यों हो

(संग दिल = पत्थर दिल, ज़ालिम), (संग-ए-आस्ताँ = दहलीज़ का पत्थर, चौखट)

यही है आज़माना, तो सताना किस को कहते हैं
अदू के हो लिये जब तुम, तो मेरा इम्तिहाँ क्यों हो

(अदू = विरोधी, शत्रु, रक़ीब)

क़फ़स में, मुझ से रूदाद-ए-चमन कहते, न डर, हमदम
गिरी है जिस पे कल बिजली, वो मेरा आशियाँ क्यों हो

(क़फ़स = पिंजरा), (रूदाद-ए-चमन = बग़ीचे का हाल), (हमदम = साथी), (आशियाँ = घोंसला)

-मिर्ज़ा ग़ालिब






Kisi  ko de ke dil koi nawaa sanj-e-fughaan kyon ho
Na ho jab dil hi seene mein to phir munh mein zubaan kyon ho

Wafa kaisi? Kahaan ka ishq? Jab sar phodna thehra
To phir ae sang dil tera hee sang-e-aastaan kyon ho
   
Yahi hai aazmaana to sataana kis ko kehte hain
Adoo ke ho liye jab tum to mera imtihaan kyon ho
   
Qafas mein mujh se roodaad-e-chaman kehte na dar humdum
Giri hai jis pe kal bijlee wo mera aashiyaan kyon ho

-Mirza Ghalib

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