Tuesday 20 January 2015

Hijaab-e-fitnaparwar ab utha leti to achha thaa/ हिजाब-ए-फ़ितनापरवर अब उठा लेती तो अच्छा था

हिजाब-ए-फ़ितनापरवर अब उठा लेती तो अच्छा था
खुद अपने हुस्न को परदा बना लेती तो अच्छा था

(हिजाब-ए-फ़ितनापरवर = उपद्रव करनेवाला पर्दा)

तेरी नीची नज़र ख़ुद तेरी इस्मत की मुहाफ़िज़ है
तू इस नश्तर की तेज़ी आजमा लेती तो अच्छा था

(इस्मत = सतीत्व, शील), (मुहाफ़िज़ = रक्षक), (नश्तर= शल्य क्रिया/ चीर-फाड़ करने वाला छोटा चाकू)

तेरी चीन-ए-ज़बी ख़ुद इक सज़ा कानून-ए-फ़ितरत में
इसी शमशीर से कार-ए-सज़ा लेती तो अच्छा था

(चीन-ए-ज़बी = माथे का बल, माथे की सिलवट) (कानून-ए-फ़ितरत = प्रकृति का क़ानून), (शमशीर = तलवार), (कार-ए-सज़ा = दंड देने का कार्य)

ये तेरा ज़र्द रुख़, ये ख़ुश्क लब, ये वहम, ये वहशत
तू अपने सर से ये बादल हटा लेती तो अच्छा था

(ज़र्द रुख़ = पीला मुखड़ा), (ख़ुश्क लब = सूखे होंठ), (वहशत = पागलपन, दीवानगी, उन्माद)

दिल-ए-मजरूह को मजरूहतर करने से क्या हासिल
तू आँसू पोंछ कर अब मुस्कुरा लेती तो अच्छा था

(दिल-ए-मजरूह = घायल दिल), (मजरूह = घायल)

अगर ख़लवत में तूने सर उठाया भी तो क्या हासिल 
भरी महफ़िल में आकर सर झुका लेती तो अच्छा था 

(ख़लवत  = एकांत)

तेरे माथे का टीका मर्द की क़िस्मत का तारा है
अगर तू साज़-ए-बेदारी उठा लेती तो अच्छा था

(साज़-ए-बेदारी = जागरण कावाद्य/ बाजा)

सिनानें खैंच ली हैं सर-फिरे बाग़ी जवानों ने
तू सामान-ए-जराहत अब उठा लेती तो अच्छा था

(सिनानें = भाले), (सामान-ए-जराहत = शल्य-चिकित्सा संबंधी सामग्री)

तेरे माथे पे ये आँचल बहुत ही ख़ूब है लेकिन
तू इस आँचल से एक परचम बना लेती तो अच्छा था

(परचम = झंडे का कपड़ा)

-मजाज़ लखनवी







Hijaab-e-fitnaparwar ab utha leti to achha thaa
Khud apne husn ko parda bana leti to achha thaa 

Teri neechi nazar khud teri ismat ki muhafiz hai
Tu is nashtar ki tezi aazma leti to achha thaa

Tere maathe ka tika mard ki kismat ka taara hai
Agar tu saaz-e-bedari utha leti to achha thaa

Tere maathe pe ye aanchal bahut hi khoob hai lekin
Tu is aanchal se ik parcham bana leti to achha thaa

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