Sunday 25 January 2015

Har ek ghar mein diyaa bhi jale, anaaj bhi ho/ हर एक घर में दिया भी जले, अनाज भी हो

हर एक घर में दिया भी जले, अनाज भी हो
अगर ना हो कहीं ऐसा तो एहतिजाज भी हो

(एहतिजाज = अपने किसी अहित के लिए अहितकर्ता से रोष प्रकट करना)

हुकूमतों को बदलना तो कुछ मुहाल नहीं
हुकूमतें जो बदलता है वो समाज भी हो

(मुहाल = असंभव, कठिन, दुष्कर)

रहेगी कब तलक वादों में क़ैद खुश-हाली
हर एक बार ही कल क्यूँ, कभी तो आज भी हो

ना करते शोर शराबा तो और क्या करते
तुम्हारे शहर में कुछ और काम काज भी हो

-निदा फ़ाज़ली

इसी ग़ज़ल के कुछ और अश'आर:

रहेगी वादों में कब तक असीर खुश-हाली
हर एक बार ही कल क्यूँ, कभी तो आज भी हो

(असीर = क़ैद, बंदी)

बदल रहे हैं कई आदमी दरिंदों में
मरज़ पुराना है उसका नया इलाज भी हो

अकेले ग़म से नई शायरी नहीं होती
ज़बान-ए-मीर में ग़ालिब का इम्तिज़ाज भी हो

(इम्तिज़ाज = मिलाना, मिश्रित करना, मिलावट)


Movie: Dhoop



Har ek ghar mein diyaa bhi jale, anaaj bhi ho
Agar na ho kahin aisaa to ehatijaaj bhi ho

HukumatoN ko badalnaa to kuch muhaal nahin
Hukumatein jo badaltaa hai wo samaaj bhi ho

Rahegi kab talak waadoN mein qaid Khush-haali
Har ek baar hi kal kyuN, kabhi to aaj bhi ho

Na karte shor sharaabaa to aur kyaa karte
Tumhaare shahar mein kuch aur kaam kaaj bhi ho

-Nida Fazli

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