Saturday 31 January 2015

Gulon mein rang bhare baad-e-nau-bahaar chale/ गुलों में रंग भरे, बाद-ए-नौ-बहार चले

गुलों में रंग भरे, बाद-ए-नौ-बहार चले
चले भी आओ के गुलशन का कारोबार चले

(गुल = फूल, गुलाब), (बाद-ए-नौ-बहार = नई बहार की हवा), (गुलशन = बग़ीचा)

क़फ़स उदास है यारों, सबा से कुछ तो कहो
कहीं तो बहर-ए-ख़ुदा आज ज़िक्र-ए-यार चले

(क़फ़स = पिंजरा), (सबा = मंद हवा), (बहर-ए-ख़ुदा = ख़ुदा के लिए)

बड़ा है दर्द का रिश्ता, ये दिल ग़रीब सही
तुम्हारे नाम पे आयेंगे ग़मगुसार चले

(ग़मगुसार = हमदर्द, दुःख बंटानेवाला)

जो हमपे गुज़री सो गुज़री मगर शब-ए-हिज्राँ
हमारे अश्क तेरी आक़बत सँवार चले

(शब-ए-हिज्राँ = जुदाई की रात), (अश्क = आँसू),  (आक़बत = परलोक, भविष्य)

मक़ाम 'फैज़' कोई राह में जँचा ही नहीं
जो कू-ए-यार से निकले तो सू-ए-दार चले

(मक़ाम = पड़ाव), (कू-ए-यार = प्रेमिका की गली), (सू-ए-दार = फाँसी के फंदे की ओर)

-फैज़ अहमद फैज़


इसी ग़ज़ल के कुछ और अश'आर:

कभी तो सुबह तेरे कुंज-ए-लब से हो आग़ाज़
कभी तो शब सर-ए-काकुल से मुश्कबार चले

(कुंज-ए-लब = होंठ का कोना), (आग़ाज़ = प्रारम्भ), (शब = रात), (सर-ए-काकुल = बालों के लटों से), (मुश्कबार = कस्तूरी की ख़ुशबू, बहुत ख़ुशबूदार)

हुज़ूर-ए-यार हुई दफ़्तर-ए-जुनूँ की तलब
गिरह में ले के गिरेबाँ का तार तार चले

(हुज़ूर-ए-यार = प्रेमिका के सामने), (दफ़्तर-ए-जुनूँ = उन्माद का सविस्तार वृतांत), (तलब = बुलावा, माँग), (गिरह = गाँठ), (गिरेबाँ = कुर्ते/ कमीज़ का गला)






Gulon mein rang bhare baad-e-nau-bahaar chale
Chale bhi aao ke gulshan ka kaarobar chale

Kafas udaas hai yaaron saba se kuch to kaho
Kaheen to bahar-e-khuda aaj zikr-e-yaar chale

Bada hai dard ka rishta ye dil gareeb sahi
Tumhare naam pe aayenge gham-gusaar chale

Jo humpe guzri so guzri magar shab-e-hizraan
Hamare ashk teri aakbat sanwaar chale

Makaam 'Faiz' koi raah mein janchaa hi nahi
Jo koo-e-yaar se nikle to soo-e-daar chale

-Faiz Ahmed Faiz

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