Saturday 24 January 2015

Ghazal ka saaz uthao badi udaas hai raat/ ग़ज़ल का साज़ उठाओ बड़ी उदास है रात

ग़ज़ल का साज़ उठाओ बड़ी उदास है रात
नवा-ए-मीर सुनाओ बड़ी उदास है रात

(नवा-ए-मीर = मीर तक़ी मीर की ग़ज़ल)

कहें न तुमसे तो फिर और किससे जाके कहें
सियाह ज़ुल्फ़ के सायों बड़ी उदास है रात

(सियाह = काली)

सुना है पहले भी ऐसे में बुझ गए हैं चिराग़
दिलों की ख़ैर मनाओ बड़ी उदास है रात

दिये रहो यूँ ही कुछ देर और हाथ में हाथ
अभी ना पास से जाओ बड़ी उदास है रात

-फ़िराक़ गोरखपुरी




इसी ग़ज़ल के कुछ और अश'आर:

नवा-ए-दर्द में इक ज़िंदगी तो होती है
नवा-ए-दर्द सुनाओ बड़ी उदास है रात

(नवा-ए-दर्द = दर्द के गीत)

उदासियों के जो हमराज़-ओ-हमनफ़स थे कभी
उन्हें ना दिल से भुलाओ बड़ी उदास है रात

(हमराज़-ओ-हमनफ़स = संगी-साथी, मित्र)

जो हो सके तो इधर की राह भूल पड़ो
सनमक़दे की हवाओं बड़ी उदास है रात

(सनमक़दा = प्रेमिका के रहने का स्थान)

अभी तो ज़िक्र-ए-सहर दोस्तों है दूर की बात
अभी तो देखते जाओ बड़ी उदास है रात

(ज़िक्र-ए-सहर = सुबह का ज़िक्र)

समेट लो कि बड़े काम की है दौलत-ए-ग़म
इसे यूं ही न गंवाओ बड़ी उदास है रात

इसी खंडहर में कहीं कुछ दिये हैं टूटे हुए
इन्ही से काम चलाओ बड़ी उदास है रात

दोआतिशां न बना दे उसे नवा-ए-'फ़िराक़'
ये साज़-ए-ग़म न सुनाओ बड़ी उदास है रात

(दोआतिशां = दोबारा जलना), ( नवा-ए-'फ़िराक़' = फ़िराक़ का गीत/ ग़ज़ल)


Ghazal ka saaz uthao badi udaas hai raat
Nawaa-e-Meer sunaao badi udaas hai raat

Kahen na tumse to phir aur kis se jaa ke kahen
Siyaah zulf ke saayon badi udaas hai raat

Suna hai pehle bhi aise mein bujh gaye hain chiraag
Dilon ki khair manaao badi udaas hai raat

Diye raho yuheen kuch der aur haath mein haath
Abhi na paas se jaao badi udaas hai raat

-Firaq Gorakhpuri

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