Sunday 25 January 2015

Dhuaan utha hai kahin aag jal rahi hogi/ धुआँ उठा है कहीं आग जल रही होगी

धुआँ उठा है कहीं आग जल रही होगी
असीर रौशनी बाहर निकल रही होगी

(असीर = बंदी, क़ैदी)

ये चारों ओर से आते हुए कई रस्ते
जब एक दूसरे के जिस्म आ के छूते हैं
कोई तो हाथ मिलाकर निकल गया होगा
किसी की मोड़ पे मंज़िल बदल गई होगी

हरेक रोज़ नया आसमान खुलता है
ख़बर नहीं है कि कल दिन का रंग क्या होगा
पलक से पानी गिरा है तो उसको गिरने दो
कोई पुरानी तमन्ना पिघल रही होगी

-गुलज़ार




Dhuaan utha hai kahin aag jal rahi hogi
Aseer roshni bahar nikal rahi hogi

Ye charon or se aate hue kai raste
Jab ek dusre ke jism aake chhoote hain
Koi to haath milakar nikal gaya hoga
Kisi ki mod par manzil badal gayi hogi

Har ek roz naya aasman khulta hai
Khabar nahi hai ke kal din ka rang kya hoga
Palak se pani gira hai to usko girne do
Koi purani tammanna pighal rahi hogi

-Gulzar

3 comments:

  1. same eshi hai condition hai zindgi ki kya jane aagne kya hoga

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  2. असीर is prisoner, captive. So, असीर-ए-रोशनी should be 'the imprisoned light' and not रौशनी की गर्द/ धूल. Please correct that.

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    1. शुक्रिया समीर जी, आपने बिलकुल ठीक कहा है। उर्दू में असीर 6 तरह से लिखा जाता है और उसके अलग अलग अर्थ होते हैं जो इस प्रकार हैं:

      असीर = धूल, गर्द
      असीर = उच्च, बुलंद, आकाश, आसमान
      असीर = शुद्ध, ख़ालिस,पवित्र
      असीर = बंदी, क़ैदी
      असीर = निचोड़ा हुआ अर्क, अंगूर की मदिरा
      असीर = कठिन, दुष्कर, मुश्किल
      मैंने यहाँ असीर-ए-रोशनी समझा इसलिए रौशनी की गर्द/ धूल का अर्थ निकाला। आपका कमेंट पढ़ने के बाद ग़ज़ल दोबारा सुनी और समझ में आया कि यहाँ पर असीर-ए-रोशनी नहीं बल्कि असीर रोशनी कहा गया है।
      Corrected it now. Thanks again!

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