Sunday 4 January 2015

Chaand ke saath kayi dard purane nikle/ चाँद के साथ कई दर्द पुराने निकले

चाँद के साथ कई दर्द पुराने निकले
कितने ग़म थे जो तेरे ग़म के बहाने निकले

फ़स्ल-ए-गुल आई फिर इक बार असिरान-ए-वफ़ा
अपने ही ख़ून के दरिया में नहाने निकले

(फ़स्ल-ए-गुल = बसंत ऋतु, बहार का मौसम), (असिरान-ए-वफ़ा = वफ़ा के क़ैदी, वफ़ादार लोग, वफ़ा निभाने वाले)

दिल ने एक ईटं से तामीर किया ताज-महल
तूने इक बात कही लाख़ फ़साने निकले

(तामीर = निर्माण, बनाना, मकान बनाने का काम)

दश्त-ए-तन्हाई-ए-हिज्रा में खड़ा सोचता हूँ
हाय क्या लोग मेरा साथ निभाने निकले

(दश्त-ए-तन्हाई-ए-हिज्रा में = जुदाई के अकेलेपन के जंगल में)

-अमजद इस्लाम अमजद


इसी ग़ज़ल के कुछ और अश'आर:

हिज्र कि चोट अजब संग-शिकन होती है
दिल की बेफ़ैज़ ज़मीनों से ख़ज़ाने निकले

(हिज्र = जुदाई), (संग = पत्थर), (बेफ़ैज़ = जिससे किसी को लाभ न हो, कँजूस)

उम्र गुज़री है शब-ए-तार में आँखें मलते
किस उफ़क़ से मेरा ख़ुर्शीद ना जाने निकले

(शब-ए-तार = अँधेरी रात), (उफ़क़ = क्षितिज), (ख़ुर्शीद = सूरज)

कू-ए-क़ातिल में चले जैसे शहीदों का जुलूस
ख़्वाब यूँ भीगती आँखों को सजाने निकले

(कू-ए-क़ातिल = क़ातिल की गली)

मैंने 'अमजद' उसे बेवास्ता देखा ही नहीं
वो तो ख़ुश्बू में भी आहट के बहाने निकले

(बेवास्ता = बिना कारण)




Chaand ke saath kayi dard purane nikle
Kitane gham the jo tere gham ke bahaane nikale

Fasl-e-gul aayi phir ik baar asiraan-e-wafa
Apne hi khoon ke dariya mein nahaane nikale

Dil ne ik eent se taamir kiya tajmahal
Toone ik baat kahi laakh fasaane nikale

Dasht-e-tanahaayi-e-hijraan mein khada sochata hoon
Haaye kya log mera saath nibhaane nikale

-Amjad Islam Amjad

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