Thursday 29 January 2015

Chaahi thi dil ne tujhse wafaa kam bahut hi kam/ चाही थी दिल ने तुझसे वफ़ा कम बहुत ही कम

चाही थी दिल ने तुझसे वफ़ा कम बहुत ही कम
शायद इसी लिए है गिला कम बहुत ही कम

हाँ कट चली है उम्र-ए-गुरेज़ाँ तेरे बगैर
इतना बड़ा गुनाह है सज़ा कम बहुत ही कम

(उम्र-ए-गुरेज़ाँ = भागती हुई उम्र)

जलते सुना चराग से दामन हज़ार बार
दामन से कब चराग जला कम बहुत ही कम

आ जाइए के आप से पहले ना आए मौत
अब वक़्त रह गया है बहुत कम बहुत ही कम

सदियों से यूँ तो है यहाँ इंसान का वजूद
इंसान हमको कब है मिला कम बहुत ही कम

-महबूब ख़िज़ां

इसी ग़ज़ल के कुछ और अश'आर:

थे दूसरे भी तेरी मोहब्बत के आस-पास
दिल को मगर सुकून मिला, कम बहुत ही कम

अब रूह काँपती है, अजल है क़रीब-तर
ऐ हम-नसीब ,नाज़-ओ-अदा कम बहुत ही कम

(अजल = मृत्यु)

क्या हुस्न था कि आँख लगी साया हो गया
वो सादगी की मार, हया कम बहुत ही कम

चाही थी दिल ने तुझसे वफ़ा, कम बहुत ही कम
शायद इसीलिये है गिला, कम बहुत ही कम

यूँ मत कहो 'ख़िज़ाँ' कि बहुत देर हो गई
हैं आज-कल वो तुम से ख़फ़ा कम बहुत ही कम


https://www.youtube.com/watch?v=ruBOJZkHvMA&feature=youtu.be







Chaahi thi dil ne tujhse wafaa kam bahut hi kam
Shayad isi liye hai gila kam bahut hi kam

Haan kat chali hai umr-e-gurejaan tere bagair
Itna bada gunaah hai saza kam bahut hi kam

Jalte suna chaarag se daaman hazaar baar
Daaman se kab chaarag jalaa kam bahut hi kam

Aa jayiye ke aap se pehle na aaye maut
Ab waqt reh gaya hai bahut kam bahut hi kam

Sadiyon se yoon to hai yahaan insaan ka wajood
Insaan humko kab hai mila kam bahut hi kam

-Mehboob Khizaan

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