Tuesday 20 January 2015

Ab mere pass tum aayee ho to kya aayee ho/ अब मेरे पास तुम आई हो तो क्या आई हो

अब मेरे पास तुम आई हो तो क्या आई हो

मैंने माना कि तुम एक पैकर-ए-रानाई हो
चमन-ए-दहर में रूह-ए-चमन-आराई हो
तल’अत-ए-मेहर हो, फिरदौस की बरनाई हो
बिन्त-ए-महताब हो, गर्दूं से उतर आई हो

(पैकर-ए-रानाई = साकार सौंदर्य), (चमन-ए-दहर = संसार रुपी वाटिका/ बगीचा), (रूह-ए-चमन-आराई = वाटिका को सजाने वाली आत्मा), (तल’अत-ए-मेहर = सूर्य की चमक), (फिरदौस की बरनाई = स्वर्ग की जवानी), (बिन्त-ए-महताब = चाँद की बेटी), (गर्दूं = आकाश)

मुझ से मिलने में अब अंदेशा-ए-रुसवाई है
मैंने ख़ुद अपने किए की ये सज़ा पाई है

(अंदेशा-ए-रुसवाई = बदनामी का अंदेशा)

ख़ाक में आह मिलाई है जवानी मैंने
शोला-जारों में जलाई है जवानी मैंने
शहर-ए-खूबाँ में गँवाई है जवानी मैंने
ख़्वाब-गाहों में जगाई है जवानी मैंने

(शहर-ए-खूबाँ = सुंदरियों के नगर में)

हुस्न ने जब भी इनायत की नज़र डाली है
मेरे पैमान-ए-मुहब्बत ने सिपर डाली है

(इनायत = कृपा, दया, मेहरबानी), (पैमान-ए-मुहब्बत = प्रेम=प्रतिज्ञा), (सिपर = ढाल, हथियार)

उन दिनों मुझ पे क़यामत का जुनूँ तारी था
सर पे सरशारी-ओ-इशरत का जुनूँ तारी था
माहपारों से मुहब्बत का जुनूँ तारी था
शहरयारों से रक़ाबत का जुनूँ तारी था

(जुनूँ तारी था = उन्माद छाया था), (सरशारी-ओ-इशरत = सुख-भोग), (माहपारों से = चाँद के टुकड़ों (सुंदरियों) से ), (शहरयारों से = शहर के मालिकों से), (रक़ाबत = प्रतिद्वंदिता)

बिस्तर-ए-मखमल-ओ-संजाब थी दुनिया मेरी
एक रंगीन-ओ-हसीं ख़्वाब थी दुनिया मेरी

(बिस्तर-ए-मखमल-ओ-संजाब = मुलायम खाल और मखमल का बिस्तर)

जन्नत-ए-शौक़ थी बेगाना-ए-आफ़ात-ए-समूम
दर्द जब दर्द न हो, काविश-ए-दर्मां मालूम
ख़ाक थे दीदा-ए-बेबाक में गर्दूं के नुजूम
बज़्म-ए-परवीं थी निगाहों में कनीज़ों का हुजूम

(जन्नत-ए-शौक़ = प्रेम का स्वर्ग), (बेगाना-ए-आफ़ात-ए-समूम = जहरीली हवा की विपत्तियों से अपरिचित),
(काविश-ए-दर्मां = उपचार की कोशिश), (दीदा-ए-बेबाक में = निडर आँखों में), (गर्दूं के नुजूम  = आकाश के नक्षत्र), (बज़्म-ए-परवीं = सितारों जैसी सुंदरियों की सभा), (कनीज़ों का = दासियों का)


लैला-ए-नाज़ बर-अफ्गंदा निक़ाब आती थी
अपनी आंखों में लिए दावत-ए-ख़्वाब आती थी

(लैला-ए-नाज़ बर-अफ्गंदा निक़ाब = चेहरे पर नक़ाब डाले हुए रात), (दावत-ए-ख़्वाब = नींद का निमंत्रण)

संग को गौहर-ए-नायाब-ओ-गराँ जाना था
दश्त-ए-पुरख़ार को फिरदौस-ए-जवाँ जाना था
रेग को सिलसिला-ए-आब-ए-रवाँ जाना था
आह ये राज़ अभी मैंने कहाँ जाना था

(संग = पत्थर), (गौहर-ए-नायाब-ओ-गराँ = अलभ्य तथा अमूल्य मोती), (दश्त-ए-पुरख़ार = काँटों भरा जँगल), (फिरदौस-ए-जवाँ = युवा स्वर्ग), (रेग = रेत), (सिलसिला-ए-आब-ए-रवाँ =बहते जल का सिलसिला)

मेरी हर फ़तह में है एक हज़ीमत पिन्हाँ
हर मसर्रत में है राज़-ए-ग़म-ओ-हसरत पिन्हाँ

( हज़ीमत = पराजय),  (पिन्हाँ = निहित), (मसर्रत = हर्ष, आनंद, ख़ुशी), 

क्या सुनोगी मेरी मजरूह जवानी की पुकार
मेरी फरियाद-ए-जिगर दोज़, मेरा नाला-ए-ज़ार
शिद्दत-ए-कर्ब में डूबी हुयी मेरी गुफ़्तार
मैं कि ख़ुद अपने मज़ाक-ए-तरब आगीं का शिकार

(मजरूह = घायल), (फरियाद-ए-जिगर दोज़ = दिल तोड़ने वाली फ़रियाद), (नाला-ए-ज़ार = दुःख भरा आर्तनाद), (शिद्दत-ए-कर्ब = तीव्र पीड़ा), (गुफ़्तार = बात-चीत), (मज़ाक-ए-तरब आगीं = प्रसन्न हृदयता की अभिरुचि)

वो गुदाज़-ए-दिल-ए-मरहूम कहाँ से लाऊँ
अब मैं वो जज़्बा-ए-मासूम कहाँ से लाऊँ

(गुदाज़-ए-दिल-ए-मरहूम = मृत ह्रदय की मृदुलता), (जज़्बा-ए-मासूम = सरल भावना)

मेरे साये से डरो तुम मेरी क़ुर्बत से डरो
अपनी जुर्रत की क़सम अब मेरी जुर्रत से डरो
तुम लताफ़त हो अगर मेरी लताफ़त से डरो
मेरे वादे से डरो मेरी मुहब्बत से डरो

(क़ुर्बत = सामीप्य), (लताफ़त = माधुर्य)

अब मैं अल्ताफ़-ओ-इनायत का सज़ावार नहीं
मैं वफ़ादार नहीं, हाँ मैं वफ़ादार नहीं

(अल्ताफ़-ओ-इनायत = दया और कृपा)

अब मेरे पास तुम आई हो तो क्या आई हो

-मजाज़ लखनवी





Ab mere paas tum aayee ho to kya aayee ho

Maine maana ke tum ik paikar-e-raanaee ho
Chaman-e-daher meiN rooh-e-chaman-aarayee ho
Tallat-e-meher ho firdaus ki barnai ho
bint-e-mehtaab ho gardoo se utar aayee ho

Mujhse milne meiN abandesha-e-ruswaayee hai
Maine khud apne kiye ki ye saza paayee hai


Un dino mujhpe qayamat ka junooN taari thaa
Sar pe sarshaari-o-ishrat ka junooN taari thaa
MaahpaaroN se mohabbat ka junooN taari thaa
ShaharyaaroN se raqabat ka junooN taari thaa

Bistar-e-makhmal-o-sanjaab thee duniya meri
Ek rangeen-o-haseeN khwaab thee duniya meri

Kya sunogi meri majrooh jawaani ki pukaar
Meri fariyaad-e-jigar doz mera naala-e-zaar
Shiddhat-e-karb meiN doobi huyee meri guftaar
Main ke khud apne mazak-e-tarab aageen ka shikaar

Wo gudaaz-e-dil-e-marhoom kahan se laaooN
Ab meiN wo zazba-e-masoom kahan se laaooN

Ab mere pass tum aayee ho to kya aayee ho

-Majaz Lakhnawi

No comments:

Post a Comment