Thursday 29 January 2015

Aaye kuch abr kuch sharaab aaye/ आए कुछ अब्र कुछ शराब आये

आए कुछ अब्र कुछ शराब आये
उसके बाद आए जो अज़ाब आये

(अब्र = बादल), (अज़ाब = दुख, कष्ट, संकट)

बाम-ए-मीना से माहताब उतरे
दस्त-ए-साक़ी में आफ़ताब आये

(बाम = छत), (मीना = शराब रखने के पात्र), (माहताब = चन्द्रमा), (दस्त-ए-साक़ी = साक़ी का हाथ), (आफ़ताब = सूरज)

कर रहा था ग़म-ए-जहाँ का हिसाब
आज तुम याद बेहिसाब आये

(ग़म-ए-जहाँ = दुनिया के दुःख)

ना गई तेरे ग़म की सरदारी
दिल में रोज़ यूँ इंक़लाब आये

(सरदारी = अध्यक्षता, स्वामित्व)

इस तरह अपनी ख़ामोशी गूंजी
गोया हर सिम्त से ज़वाब आये

(गोया = मानो, जैसे), (सिम्त = दिशा, ओर)

'फ़ैज़' थी राह सर-ब-सर मंज़िल
हम जहाँ पहुँचे कामयाब आए

(सर-ब-सर = बिलकुल, सरासर)

-फैज़ अहमद फैज़


इसी ग़ज़ल के कुछ और अश'आर:


हर रग-ए-ख़ूँ में फिर चराग़ाँ हो

सामने फिर वो बेनक़ाब आए

उम्र के हर वरक़ पे दिल को नज़र
तेरी मेहर-ओ-वफ़ा के बाब आए

(वरक़ = किताब के पन्ने, पृष्ठ), (मेहर–ओ–वफ़ा = प्यार और वफ़ा), (बाब = किताब का अध्याय, परिच्छेद)

जल उठे बज़्म-ए-ग़ैर के दर-ओ-बाम
जब भी हम ख़ानाख़राब आए

(बज़्म-ए-ग़ैर = ग़ैर की महफ़िल), (दर-ओ-बाम = दरवाज़े और छत), (ख़ानाख़राब  = अभागा, बदनसीब)


Aaye kuch abr kuch sharaab aaye
Uske baad aaye jo azaab aaye

Baam-e-meena se maahtaab utre
Dast-e-saaqi mein aftaab aaye

Kar raha tha gham-e-jahaan ka hisaab
Aaj tum yaad be-hisaab aaye

Na gayi tere gham ki sardaari
Dil mein roz yoon inqalaab aaye

Is tarah apni khaamoshi goonji
Goya har simt se jawaab aaye

'Faiz' thi raah sar-ba-sar manzil
Hum jahaan pohuche kaamyaab aaye

-Faiz Ahmed Faiz

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