Monday 29 December 2014

Roshan jamal-e-yaar se hai anjuman tamaam/ रौशन जमाल-ए-यार से है अंजुमन तमाम

रौशन जमाल-ए-यार से है अंजुमन तमाम
दहका हुआ है आतिश-ए-गुल से चमन तमाम

(जमाल-ए-यार = प्रेमिका का सौंदर्य), (अंजुमन = सभा, महफ़िल), (आतिश-ए-गुल = लाल गुलाब), (चमन = बग़ीचा)

अल्लाह रे जिस्म-ए-यार की ख़ूबी के ख़ुद-ब-ख़ुद
रंगीनियों में डूब गया पैरहन तमाम

(पैरहन = लिबास)

देखो तो चश्म-ए-यार की जादू निगाहियाँ
बेहोश इक नज़र में हुई अंजुमन तमाम

(चश्म-ए-यार = प्रेमिका की आँखें)

-हसरत मोहानी




इसी ग़ज़ल के कुछ और अश'आर:

हैरत गुरूर-ए-हुस्न से शोख़ी से इज़्तिराब
दिल ने भी तेरे सीख लिए हैं चलन तमाम

(गुरूर-ए-हुस्न = सुंदरता का घमंड), (इज़्तिराब = व्याकुलता, बेचैनी, आतुरता)

दिल ख़ून हो चुका है जिगर हो चुका है ख़ाक
बाक़ी हूँ मैं मुझे भी कर ऐ तेग़ज़न तमाम

(तेग़ज़न = सिपाही योद्धा)



Roshan jamal-e-yaar se hai anjuman tamaam
Dahka hua hai aatish-e-gul se chaman tamaam

Allah re jism-e-yaar ki khoobi ke khud-ba-khud
Ranginiyon mein doob gaya pairaahan tamaam

Dekho to chashm-e-yaar ki jaadoo nighaayen
Behosh ik nazar mein huyee anjuman tamaam

-Hasrat Mohani

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