Wednesday 24 December 2014

Kabhi to aasmaan se chaand utare jaam ho jaaye/ कभी तो आस्माँ से चाँद उतरे जाम हो जाए

कभी तो आस्माँ से चाँद उतरे जाम हो जाए
तुम्हारे नाम की इक ख़ूबसूरत शाम हो जाए

वो मेरा नाम सुनकर कुछ ज़रा शर्मा से जाते हैं
बहुत मुमकिन है कल इसका मुहब्बत नाम हो जाए

ज़रा सा मुस्कुरा कर हाल पूछो दिल बहल जाए
हमारा काम हो जाए तुम्हारा नाम हो जाए

उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो
न जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जाए

-बशीर बद्र


इसी ग़ज़ल के कुछ और अश'आर:

हमारा दिल सवेरे का सुनहरा जाम हो जाए
चराग़ों की तरह आँखें जलें, जब शाम हो जाए

मैं ख़ुद भी अहतियातन, उस गली से कम गुजरता हूँ
कोई मासूम क्यों मेरे लिए, बदनाम हो जाए

अजब हालात थे, यूँ दिल का सौदा हो गया आख़िर
मुहब्बत की हवेली जिस तरह नीलाम हो जाए

समन्दर के सफ़र में इस तरह आवाज़ दो हमको
हवायें तेज़ हों और कश्तियों में शाम हो जाए

मुझे मालूम है उसका ठिकाना फिर कहाँ होगा
परिंदा आस्माँ छूने में जब नाकाम हो जाए



Kabhi to aasmaan se chaand utare jaam ho jaaye
Tumhare naam ki ek khoobsurat shaam ho jaaye

Wo mera naam sun kar kuch zara sharma se jaate hai
Bahut mumkin hai kal iska mohabbat naam ho jaaye

Zara sa muskurakar haal poochho dil behal jaaye
Hamara kaam ho jaaye tumhara naam ho jaaye

Ujaale apani yaadon ke hamare saath rehne do
Na jaane kis gali mein zindagi ki shaam ho jaaye

-Bashir Badr

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