Monday 29 December 2014

Chupke chupke raat din aansoon bahana yaad hai/ चुपके-चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है

चुपके-चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है
हमको अब तक आशिक़ी का वो ज़माना याद है

तुझसे मिलते ही वो कुछ बेबाक हो जाना मेरा
और तेरा दाँतों में वो उँगली दबाना याद है

खींच लेना वो मेरा परदे का कोना दफ़्अतन
और दुपट्टे से तेरा वो मुँह छुपाना याद है

(दफ़्अतन = सहसा, अचानक, अकस्मात्)

दोपहर की धूप में मेरे बुलाने के लिए
वो तेरा कोठे पे नंगे पाँव आना याद है

-हसरत मोहानी


इसी ग़ज़ल के कुछ और अश'आर:

बा-हज़ाराँ इज़्तराब-ओ-सद हज़ाराँ इश्तियाक़
तुझसे वो पहले-पहल दिल का लगाना याद है

(बा-हज़ाराँ इज़्तराब-ओ-सद हज़ाराँ इश्तियाक़ = असीम बेचैनी और अत्यधिक उत्सुकता के साथ)

जानकार सोता तुझे वो क़स्दे पा-बोसी मेरा
और तेरा ठुकरा के सर वो मुस्कराना याद है

(क़स्दे पा-बोसी = पाँव चूमने की कोशिश)

तुझको जब तन्हा कभी पाना तो अज़ राह-ए-लिहाज़
हाले दिल बातों ही बातों में जताना याद है

(अज़ राह-ए-लिहाज़ = रास्ते का संकोच करके)

ग़ैर की नज़रों से बच कर सबकी मरज़ी के ख़िलाफ़
वो तेरा चोरी छिपे रातों को आना याद है

आ गया गर वस्ल की शब भी कहीं ज़िक्र-ए-फ़िराक़
वो तेरा रो-रो के मुझको भी रुलाना याद है

(वस्ल की शब = मिलान की रात), (ज़िक्र-ए-फ़िराक़ = जुदाई की बात)

देखना मुझको जो बरगश्‍ता तो सौ-सौ नाज़ से
जब मना लेना तो फिर ख़ुद रूठ जाना याद है

(बरगश्‍ता = विरुद्ध, प्रतिकूल)

चोरी-चोरी हम से तुम आ कर मिले थे जिस जगह
मुद्दतें गुज़रीं पर अब तक वो ठिकाना याद है

बावजूद-ए-इद्दआ-ए-इत्तिक़ा ‘हसरत’ मुझे
आज तक अहद-ए-हवस का वो ज़माना याद है

(इत्तिक़ा = संयम, इन्द्रिय निग्रह), (इद्दआ = दावा कर्ण. इच्छा करना)
(बावजूद-ए-इद्दआ-ए-इत्तिक़ा = संयम का पालन करने का दावा करने के बावजूद)
(अहद-ए-हवस = शौक/ लालसा/ उत्कंठा का समय)



Chupke chupke raat din aansoon bahana yaad hai
Humko ab tak aashiqi ka wo zamaana yaad hai

Tujh se milte hi wo kuch be-baak ho jaana mera
Aur tera daanton mein wo ungli dabaana yaad hai

Kheench lena wo mera parde ka kona daf-fatan
Aur dupatte se tera wo munh chupaana yaad hai

Dopaher ki dhoop mein mere bulaane ke liye
Wo tera kothe pe nange paaon aana yaad hai

-Hasrat Mohani

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