Saturday 20 December 2014

Abhi wo kamsin ubhar raha hai abhi hai us par shabaab aadha/ अभी वो कमसिन उभर रहा है अभी है उसपर शबाब आधा

अभी वो कमसिन उभर रहा है अभी है उसपर शबाब आधा
अभी जिगर में ख़लिश है आधी, अभी है मुझपर इताब आधा

(ख़लिश = चुभन, वेदना), (इताब = क्रोध, गुस्सा)

मेरे सवाल-ऐ-वस्ल पर तुम नज़र झुका कर खड़े हुए हो
तुम्ही बताओ ये बात क्या है सवाल पूरा जवाब आधा

(सवाल-ऐ-वस्ल = मिलन का प्रश्न)

लगा के लारे पे ले तो आया हूँ शेख़ साहब को मैकदे तक
अगर ये दो घूँट आज पी लें मिलेगा मुझको सवाब आधा

(सवाब = पुण्य)

कभी सितम है, कभी करम है, कभी तवज्जो, कभी तग़ाफ़ुल
ये साफ़ ज़ाहिर है मुझपे अब तक, हुआ हूँ मैं कामयाब आधा

(तग़ाफ़ुल = उपेक्षा, बेरुख़ी)

-कुँवर मोहिन्दर सिंह बेदी 'सहर'

इसी ग़ज़ल के कुछ और अश'आर:

हिज़ाब-ओ-जल्वे की कश्मकश में उठाया उसने नक़ाब आधा
इधर हुवैदा सहाब आधा, उधर अयाँ माहताब आधा

(हिज़ाब-ओ-जल्वे की कश्मकश = चेहरा छुपाऊँ या दिखाऊँ की दुविधा), (हुवैदा = प्रकट, व्यक्त, ज़ाहिर),
(सहाब = बादल, मेघ), (अयाँ = स्पष्ट, ज़ाहिर), (माहताब = चन्द्रमा)

लपक के मुझ को गले लगाया ख़ुदा की रहमत ने रोज़-ए-महशर
अभी सुनाया था मोहतसिब ने मिरे गुनह का हिसाब आधा

(रोज़-ए-महशर = फैसले के दिन, क़यामत के दिन), (मोहतसिब = द्धारपाल)

किसी की चश्म-ए-सुरूर आवर से अश्क आरिज़ पे ढल रहा है
अगर शुऊर-नज़र है देखो, शराब आधी गुलाब आधा

(चश्म-ए-सुरूर = नशीली आँखें), (आवर = आता हुआ), (अश्क = आँसू), (आरिज़ = कपोल/ गाल), (शुऊर-नज़र = देखने की योग्यता)

पुराने वक़्तों के लोग ख़ुश हैं मगर तरक़्क़ी पसंद ख़ामोश
तिरी ग़ज़ल ने किया है बरपा 'सहर' अभी इंक़िलाब आधा



Abhi wo kamsin ubhar raha hai abhi hai us par shabaab aadha
Abhi jigar mein khalish hai aadhi abhi hai mujhpar itaab aadhaa

Mere sawaal-e-wasl par tum nazar jhuka kar khade huye ho
Tumhi bataao ye baat kya hai sawaal poora jawaab aadhaa

Laga ke laare pe le to aaya hoon sheikh sahaab ko maikade tak
Agar ye do ghoont aaj pi len milega mujhko sawaab aadha

Kabhi sitam hai, kabhi karam hai, kabhi tawajjo, kabhi tagaful
Ye saaf zaahir hai mujh pe ab tak, hua hoon main kaamyaab aadhaa

-Kunwar Mohinder Singh Bedi 'Sahar'

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