Monday 24 November 2014

Bas ek waqt ka khanjar meri talaash mein hai/ बस एक वक़्त का ख़ंजर मेरी तलाश में है

बस एक वक़्त का ख़ंजर मेरी तलाश में है
जो रोज़ भेस बदल कर मेरी तलाश में है

मैं एक क़तरा हूँ मेरा अलग वजूद तो है
हुआ करे जो समंदर मेरी तलाश में है

मैं देवता की तरह क़ैद अपने मंदिर में
वो मेरे जिस्म के बाहर मेरी तलाश में है

मैं जिसके हाथ में इक फूल देके आया था
उसी के हाथ का पत्थर मेरी तलाश में है

-कृष्ण बिहारी 'नूर'


इसी ग़ज़ल के कुछ और अश'आर:

ये और बात कि पहचानता नहीं मुझे
सुना है एक सितमग़र मेरी तलाश में है

(सितमग़र = जालिम, अत्याचारी)

अधूरे ख़्वाबों से उकता के जिसको छोड़ दिया
शिकन नसीब वो बिस्तर मेरी तलाश में है

ये मेरे घर की उदासी है और कुछ भी नहीं
दिया जलाये जो दर पर मेरी तलाश में है

अज़ीज़ मैं तुझे किस कदर कि हर एक ग़म
तेरी निग़ाह बचाकर मेरी तलाश में है

वो जिस ख़ुलूस की शिद्दत ने मार डाला ‘नूर’
वही ख़ुलूस मुकर्रर मेरी तलाश में है

(ख़ुलूस = सरलता और निष्कपटता, सच्चाई, निष्ठां), (मुकर्रर = दोबारा, फिर से)



Bas ek waqt ka khanjar meri talaash mein hai
Jo roj bhes badal kar meri talaash mein hai

Main ek katra hoon mera alag wajood to hai
Hua kare jo samandar meri talaash mein hai

Main dewtaa ki tarah qaid apne mandir mein
Wo mere jism ke baahar meri talaash mein hai

Main jiske haath mein ek phool deke aaya tha
Usi ke haath ka patthar meri talaash mein hai

-Krishna Bihari Noor

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