Thursday 13 November 2014

Aaina saamane rakhoge to yaad aayunga/ आईना सामने रखोगे तो याद आऊँगा

आईना सामने रखोगे तो याद आऊँगा
अपनी ज़ुल्फ़ों को सँवारोगे तो याद आऊँगा

भूल जाना मुझे आसान नहीं है इतना
जब मुझे भूलना चाहोगे तो याद आऊँगा

एक दिन भीगे थे बरसात में हम तुम दोनों
अब जो बरसात में भीगोगे तो याद आऊँगा

याद आऊँगा उदासी की जो रुत आयेगी
जब कोई जश्न मनाओगे तो याद आऊँगा

-राजेन्द्र नाथ ‘रहबर’

इसी ग़ज़ल के कुछ और अश'आर:

रंग कैसा हो, ये सोचोगे तो याद आऊँगा
जब नया सूट ख़रीदोगे तो याद आऊँगा

ध्यान हर हाल में जायेगा मिरी ही जानिब
तुम जो पूजा में भी बैठोगे तो याद आऊँगा

चांदनी रात में, फूलों की सुहानी रुत में
जब कभी सैर को निकलोगे तो याद आऊँगा

जिन में मिल जाते थे हम तुम कभी आते जाते
जब भी उन गलियों से गुज़रोगे तो याद आऊँगा

शैल्फ़ में रक्खी हुई अपनी किताबों में से
कोई दीवान उठाओगे तो याद आऊँगा

शम्अ की लौ पे सर-ए-शाम सुलगते जलते
किसी परवाने को देखोगे तो याद आऊँगा

जब किसी फूल पे ग़श होती हुई बुलबुल को
सह्न-ए-गुलज़ार में देखोगे तो याद आऊँगा


Aaina saamane rakhoge to yaad aayunga
Apani zulfon ko sanwaaroge to yaad aayunga

Bhool jaana mujhe aasaan nahi hai itana
Jab mujhe bhoolana chaahoge to yaad aaunga

Ek din bheege the barsaat mein hum tum dono
Ab jo barsaat me bheegoge to yaad aayunga

Yaad aayunga udaasi ki jo rut aayegi
Jab koyi jashn manaaoge to yaad aayunga

-Rajendra Nath Rehbar

1 comment: