Saturday 25 October 2014

Zulmat-kade mein mere shab-e-gham ka josh hai/ ज़ुल्मत-कदे में मेरे, शब-ए-ग़म का जोश है

ज़ुल्मत-कदे में मेरे, शब-ए-ग़म का जोश है
इक शम`अ है दलील-ए-सहर, सो ख़मोश है

(ज़ुल्मत-कदे = अँधेरे घर), (शब-ए-ग़म का जोश = ग़म की रात का तूफ़ान, अँधेरा ही अँधेरा), (शम`अ = शमा, दीपक, चिराग़), (दलील-ए-सहर = सुबह का सबूत, सुबह के होने का प्रमाण)

दाग़-ए-फ़िराक़-ए-सोहबत-ए-शब की जली हुई
इक शम`अ रह गई है, सो वह भी ख़मोश है

(दाग़-ए-फ़िराक़-ए-सोहबत-ए-शब = रात की महफ़िल के विरह का दाग़)

आते हैं ग़ैब से, ये मज़ामीं ख़याल में
ग़ालिब, सरीर-ए-ख़ामा नवा-ए-सरोश है

(ग़ैब = परोक्ष, आकाश, परलोक) , (मज़ामीं = विषय, विचार), (सरीर-ए-ख़ामा = क़लम की आवाज़), (नवा-ए-सरोश = जिब्रील (ख़ुदा का सन्देश लाने वाला फ़रिश्ता) की आवाज़)

-मिर्ज़ा ग़ालिब


Zulmat-kade mein mere shab-e-gham ka josh hai
Ik shamma'a hai daleel-e-sahar, so khamosh hai

Daagh-e-firaaq-e-sohabat-e-shab ki jali hui
Ik shamma`a reh gai hai so wo bhi khamosh hai

Aate hain ghaib se ye mazaameen khayaal mein
'Ghalib',  sareer-e-khaama nawa-e-sarosh hai

 -Mirza Ghalib

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