Friday 17 October 2014

Ye karen aur wo karen/ ये करें और वो करें

ये करें और वो करें ऐसा करें वैसा करें,
ज़िन्दगी दो दिन की है दो दिन में हम क्या क्या करें

जी में आता है की दें परदे से परदे का जवाब
हम से वो पर्दा करें दुनिया से हम पर्दा करें

सुन रहा हूँ कुछ लुटेरे आ गये हैं शहर में
आप जल्दी बंद अपने घर का दरवाज़ा करें

इस पुरानी बेवफ़ा दुनिया का रोना कब तलक
आइये मिलजुल के इक दुनिया नयी पैदा करें

-नज़ीर बनारसी



इसी ग़ज़ल के कुछ और अश'आर:

दूसरों से कब तलक हम प्यास का शिकवा करें
लाओ तेशा एक दरिया दूसरा पैदा करें

(तेशा = कुल्हाड़ी)

हुस्न ख़ुद आए तवाफ़-ए-इश्क़ करने के लिए
इश्क़ वाले ज़िंदग़ी में हुस्न तो पैदा करें

(तवाफ़-ए-इश्क़ = प्यार की परिक्रमा)

चढ़ के सूली पर ख़रीदेंगे ख़रीदार आप को
आप अपने हुस्न का बाज़ार तो ऊँचा करें

कीजिएगा रहज़नी कब तक ब-नाम-ए-रहबरी
अब से बेहतर आप कोई दूसरा धंधा करें

(रहज़नी = लूटमार), (ब-नाम-ए-रहबरी = नेतृत्व के नाम पर)

दिल हमें तड़पाए तो कैसे न हम तड़पें 'नज़ीर'
दूसरे के बस में रह कर अपनी वाली क्या करें

(वाली = मालिक, संरक्षक, बादशाह)




Ye karen aur wo karen aisa karein waisa karen
Zindagi do din ki hai do din mein hum kya kya karen

Jee mein aaata hai ki dein parde se parde ka jawaab
Hum se wo parda karein duniyaa se hum parda karen

Sun raha hoon kuch lutere aa gayey hain shehar mein
Aap jaldi band apne ghar ka darwazaa karen

Is puraani bewafa duniya ka rona kab talak
Aaiye mil-jul ke ik duniya nayee paida karen

-Nazeer Banarasi

1 comment:

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