Saturday 1 November 2014

Wo khat ke purze uda raha tha/ वो ख़त के पुर्ज़े उड़ा रहा था

वो ख़त के पुर्ज़े उड़ा रहा था
हवाओं का रुख़ दिखा रहा था

कुछ और भी हो गया नुमायाँ
मैं अपना लिक्खा मिटा रहा था

(नुमायाँ = प्रकट)

उसी का ईमाँ बदल गया है
कभी जो मेरा ख़ुदा रहा था

वो एक दिन एक अजनबी को
मेरी कहानी सुना रहा था

वो उम्र कम कर रहा था मेरी
मैं साल अपने बढ़ा रहा था

-गुलज़ार


इसी ग़ज़ल के कुछ और अश'आर:

बताऊँ कैसे वो बहता दरिया
जब आ रहा था तो जा रहा था

धुआँ धुआँ हो गई थी आँखें
चराग़ को जब बुझा रहा था

मुंडेर से झुक के चाँद कल भी
पड़ोसियों को जगा रहा था

ख़ुदा की शायद रज़ा हो इसमें
तुम्हारा जो फ़ैसला रहा था

(रज़ा = मर्ज़ी, इच्छा)



Wo khat ke purze uda raha tha
Hawaon ka rukh dikha raha tha

Kuch aur bhi ho gaya numaayan
Main apna likha mita raha tha

Usi ka Imaan badal gaya hai
Kabhi jo mera khuda raha tha

Wo ek din ek ajnabi ko
Meri kahani suna raha tha

Wo umr kam kar raha tha meri
Main saal apne badha raha tha

-Gulzar 

No comments:

Post a Comment