Saturday 1 November 2014

Shaam se aankh mein namee si hai/ शाम से आँख में नमी सी है

शाम से आँख में नमी सी है
आज फिर आप की कमी सी है

दफ़्न कर दो हमें के साँस मिले
नब्ज़ कुछ देर से थमी सी है

वक़्त रहता नहीं कहीं टिक कर
इस की आदत भी आदमी सी है

कोई रिश्ता नहीं रहा फिर भी
एक तस्लीम लाज़मी सी है

(तस्लीम = सलाम, प्रणाम, हामी), (लाज़मी = आवश्यक, अनिवार्य, ज़रूरी)

-गुलज़ार

इसी ग़ज़ल के कुछ और अश'आर:

कौन पथरा गया है आँखों में
बर्फ़ पलकों पे क्यों जमी सी है

आइये रास्ते अलग कर लें
ये ज़रूरत भी बाहमी सी है

(बाहमी = पारस्परिक, आपस का, Mutual)

अजनबी सी होने लगी हैं आती जाती साँसें
आँसुओं में ठहरी हुई हैं, रूठी हुई सी यादें
आज क्यों रात यूँ थमी थमी सी हैं

पत्थरों के होठों पे हमने नाम तराशा अपना
जागी जागी आँखों में भर के सोया हुआ था सपना
आँख में नींद भी थमी थमी सी हैं







Shaam se aankh mein namee si hai
Aaj fir aapki kami si hai

Dafn kar do hamein ke saans mile
Nabz kuch der se thami si hai

Waqt rehtha nahin kahin tik kar
Iski aadat bhi aadmi si hai

Koi rishta nahin rahaa fir bhi
Ek tasleem laazmi si hai

-Gulzar 

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