Sunday 19 October 2014

Pyaas ki kaise laaye taab koi/ प्यास की कैसे लाए ताब कोई

प्यास की कैसे लाए ताब कोई
नहीं दरिया तो हो सराब कोई

[(ताब = सहनशक्ति), (सराब = मृगतृष्णा)]

रात बजती थी दूर शहनाई
रोया पीकर बहुत शराब कोई

कौन-सा ज़ख़्म किसने बख़्शा है
इसका रक्खे कहाँ हिसाब कोई

(बख़्शा = प्रदान किया)

फ़िर मैं सुनने लगा हूँ इस दिल की
आने वाला है फिर अज़ाब कोई

(अज़ाब = दुख, कष्ट, संकट)

-जावेद अख़्तर

इसी ग़ज़ल के कुछ और अश'आर:

ज़ख़्म दिल में जहाँ महकता है
इसी क्यारी में था गुलाब कोई

दिल को घेरे हैं रोज़गार के ग़म
रद्दी मे खो गई किताब कोई

शब की दहलीज़ पर शफ़क़ है लहू
फ़िर हुआ क़त्ल आफ़्ताब कोई

[(शब = रात), (दहलीज़ = चौखट), (शफ़क़ = क्षितिज की लालिमा), (आफ़्ताब = सूरज)]



Pyaas ki kaise laaye taab koi
Nahin dariya to ho saraab koi

Raat bajti thi dooor shehnaaee
Roya peekar bahut sharaab koi

Kaun sa zakhm kisne baksha hai
Iska rakhe kahan hisaab koi

Fir main sunane laga hoon is dil ki
Aane waala hai fir azaab koi

-Javed Akhtar

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