Saturday 25 October 2014

Har ek baat pe kehte ho tum ke too kya hai/ हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है

हैं और भी दुनिया में सुख़नवर बहुत अच्छे
कहते हैं के ग़ालिब का है अंदाज़-ए-बयाँ और 

(सुख़नवर = कवि, शायर), (अंदाज़-ए-बयाँ = वर्णनशैली)

बल्लीमारां के मोहल्लों की वो पेचीदा दलीलों की-सी गलियाँ
सामने टाल के नुक्कड़ पे, बटेरों के कसीदे
गुड़गुड़ाती  हुई पान की पीकों में वह दाद , वह वाह्-वा
चंद दरवाज़ों पे लटके हुए बोसीदा-से कुछ टाट के परदे            (बोसीदा =फटे-पुराने)
एक बकरी के मिमयाने की आवाज़
और धुंधलाई हुई शाम के बेनूर अंधेरे                                    (बेनूर = ज्योति विहीन)
ऐसे दीवारों से मुँह जोड़ के चलते है यहाँ
चूड़ीवालान के कटरे की ' बड़ी बी ' के जैसे
अपनी बुझती हुई आँखों से दरवाज़े टटोले
इसी बेनूर अंधेरी-सी गली क़ासिम से
एक तरतीब चरागों की शुरु होती है
एक कुरान-ए-सुख़न का सफ़ा खुलता है                                 (सफ़ा = पन्ना)
असद उल्लाह खाँ ग़ालिब का पता मिलता है 
-गुलज़ार

हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है
तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तगू क्या है

(अंदाज़-ए-गुफ़्तगू = बात करने का तरीक़ा, वार्ताशैली)

रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ायल
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है

चिपक रहा है बदन पर लहू से पैराहन
हमारी जैब को अब हाजत-ए-रफ़ू क्या है

(पैराहन = वस्त्र), (जैब = गरिबान, कुर्ते की कंठी), (हाजत-ए-रफ़ू = सिलाई की ज़रुरत)

जला है जिस्म जहाँ दिल भी जल गया होगा
कुरेदते हो जो अब राख़ जुस्तजू क्या है

(जुस्तजू = तलाश, खोज)

रही न ताक़त-ए-गुफ़्तार और अगर हो भी
तो किस उम्मीद पे कहिये के आरज़ू क्या है 

(ताक़त-ए-गुफ़्तार = बोलने की शक्ति), (आरज़ू  = कामना, इच्छा, लालसा)

-मिर्ज़ा ग़ालिब




Ghalib Live In Concert

Hain aur bhi duniya me sukhanwar bahut achche
Kahte hain ke Ghalib ka hai andaaz-e-bayaan aur

Har ek baat pe kehte ho tum ke too kya hai
Tumheen kaho ke yeh andaaz-e-guftgoo kya hai

Ragon mein daudte firne ke ham naheen qaayal
Jab aankh hi se na tapka to fir lahoo kya hai

Chipak raha hai badan par lahoo se pairaahan
Hamaari  jaib ko ab haajat-e-rafoo kya hai

Jalaa hai jism jahaan dil bhee jal gaya hoga
Kuredate ho jo ab raakh, justjoo kya hai 

Rahi na taaqat-e-guftaar, aur agar ho bhee
To kis ummeed pe  kahiye ke aarzoo kya hai

-Mirza Ghalib

1 comment:

  1. Wah wah wah wah
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