Saturday 25 October 2014

Aah ko chaahiye ik umr asar hone tak/ आह को चाहिए इक उम्र असर होने तक

आह को चाहिए इक उम्र असर होने तक
कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ़ के सर होने तक

(सर होना - श्रेष्ठ होना, जीतना)

आशिक़ी सब्र-तलब और तमन्ना बेताब
दिल का क्या रंग करूँ, ख़ून-ए-जिगर होने तक

(सब्र-तलब = धैर्य की माँग), (बेताब = व्याकुल, बैचैन), (ख़ून-ए-जिगर = कलेजे का ख़ून)

हम ने माना, कि तग़ाफ़ुल न करोगे, लेकिन
ख़ाक हो जाएँगे हम, तुम को ख़बर होने तक

(तग़ाफ़ुल = उपेक्षा, बेरुख़ी)

ग़म-ए-हस्ती का, असद किस से हो जुज़ मर्ग इलाज
शम`अ हर रंग में जलती है सहर होने तक

(ग़म-ए-हस्ती = जीवन का दुःख), (जुज़ = सिवाय), (मर्ग = मौत, मृत्यु), (सहर = सुबह)

-मिर्ज़ा ग़ालिब

पूरी ग़ज़ल, अर्थ के साथ, यहाँ देखें मीर-ओ-ग़ालिब





Aah ko chaahiye ik umr asar hone tak
Kaun jeeta hai teri zulf ke sar hone tak 

Aashiqee sabr talab aur tamanna betaab
Dil ka kya rang karoon khoon-e-jigar hone tak

Hamne maana, ke taghaful na karoge, lekin
Khaak ho jaayenge ham tumko khabar hone tak

Gham-e-hasti ka 'asad' kis se ho juz marg ilaaz
Shamma'a har rang mein jalti hai sahar hone tak

-Mirza Ghalib

2 comments: