Sunday 31 August 2014

Din guzar gaya aitbaar mein/ दिन गुज़र गया ऐतबार में

दिन गुज़र गया ऐतबार में
रात कट गयी इंतज़ार में

(ऐतबार = भरोसा, विश्वास)

वो मज़ा कहाँ वस्ल-ए-यार में
लुत्फ़ जो मिला इंतज़ार में

(वस्ल-ए-यार = प्रिय से मिलन)

उनकी इक नज़र, काम कर गयी
होश अब कहाँ होशियार में

मेरे कब्ज़े में कायनात है
मैं हूँ आपके इख़्तियार में

(कायनात = सृष्टि, जगत), (इख़्तियार = अधिकार, काबू, स्वामित्व, प्रभुत्व)

आँख तो उठी फूल की तरफ
दिल उलझ गया हुस्न-ए-ख़ार में

(हुस्न-ए-ख़ार = काँटों की खूबसूरती)

तुमसे क्या कहें, कितने ग़म सहे
हमने बेवफ़ा तेरे प्यार में

फ़िक्र-ए-आशियाँ, हर ख़िज़ाँ में की
आशियाँ जला हर बहार में

(फ़िक्र-ए-आशियाँ = घोंसले (घर) की चिंता), (ख़िज़ाँ = पतझड़)

किस तरह ये ग़म भूल जाएं हम
वो जुदा हुआ इस बहार में

-फ़ना निज़ामी




Din guzar gaya, aitbaar mein
Raat kat gayi intezaar mein

Woh maza kahan wasl-e-yaar mein
Lutf jo milaa intezaar mein

Unki ik nazar kaam kar gayi
Hosh ab kahan hoshiyar mein

Mere kabze mein kaaynaat hai
Main hoon aapke ikhtiyaar mein

Aankh to uthi phool ki taraf
Dil ulazh gaya husn-e-khaar mein

Tumse kya kahen, kitne gam sahe
Hamne bewafa tere pyaar mein

Fikr-e-aashiyaan har khizaaN me ki
Aashiyaan jalaa har bahaar mein

Kis tarah ye gham bhool jaaye hum
Wo juda hua is bahaar mein

-Fana Nizami

4 comments:

  1. NA FIKRA THI KHIJAN KI
    NA KABHI AITBAR THA
    HUM ALHADA THE HARDAM
    NA KABHI VASLE YAR THA....

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  2. सच में बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल

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  3. हमरदीफ़ ग़ज़लें,फ़ैयाज़ अहमद फ़ैयाज़ और फ़ना निज़ामी कानपुरी की, पहला मतला फ़ैयाज़ साहब का दूसरा मतला फ़ना साहब का..ऐसे ही बाकी के अशआर भी।

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