Tuesday 26 August 2014

Shola hoon bhadakne ki guzaarish nahin karta/ शोला हूँ भड़कने की गुज़ारिश नहीं करता

शोला हूँ भड़कने की गुज़ारिश नहीं करता
सच मुंह से निकल जाता है कोशिश नहीं करता

गिरती हुई दीवार का हमदर्द हूँ लेकिन
चढ़ते हुए सूरज की परस्तिश नहीं करता

(परस्तिश = पूजा, आराधना)

माथे के पसीने की महक आये ना जिस से
वो ख़ून मेरे जिस्म में गर्दिश नहीं करता

(गर्दिश = घुमाव, चक्कर)

हम्दर्दी-ए-अहबाब से डरता हूँ 'मुज़फ़्फ़र'
मैं ज़ख़्म तो रखता हूँ नुमाइश नहीं करता

[(अहबाब = स्वजन, दोस्त, मित्र), (हम्दर्दी-ए-अहबाब =  दोस्तों की सहानुभूति), (नुमाइश = दिखावट, प्रदर्शन, दिखावा)]

-मुज़फ़्फ़र वारसी







इसी ग़ज़ल के कुछ और अश'आर:

लहरों से लड़ा करता हूँ दरिया में उतर के
साहिल पे खड़े हो के मैं साज़िश नहीं करता

(साहिल = किनारा)

हर हाल में ख़ुश रहने का फ़न आता है मुझको
मरने कि दुआ, जीने की ख़्वाहिश नहीं करता




Shola hoon bhadakne ki guzaarish nahin karta
Sach munh se nikal jaata hai koshish nahin karta

Girti huyi deewaar ka humdard hoon lekin
Chadhte huye sooraj ki parasthish nahin karta

Maathe ke paseene ki mahak aaye na jis se
Wo khoon mere jism mein gardish nahin karta
    
Humdardi-e-ahbaab se darta hoon 'muzaffar'
Main zakhm to rakhta hoon numaish nahin karta

-Muzaffar Warsi

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