Monday 25 August 2014

Ek na ek shamma andhere mein jalaye rakhiye/ एक ना एक शम्मा अन्धेरे में जलाये रखिये

एक ना एक शम्मा अन्धेरे में जलाये रखिये
सुब्ह होने को है माहौल बनाये रखिये

जिन के हाथों से हमें ज़ख्म-ए-निहाँ पहुँचे हैं
वो भी कहते हैं के ज़ख्मों को छुपाये रखिये

(ज़ख्म-ए-निहाँ : छिपा हुआ ज़ख्म, अंदरूनी घाव)

कौन जाने के वो किस राहगुज़र से गुज़रे
हर गुज़रगाह को फूलों से सजाये रखिये

(राहगुज़र = गुज़रगाह = मार्ग, रास्ता, पथ)

दामन-ए-यार की ज़ीनत ना बने हर आँसू
अपनी पलकों के लिए कुछ तो बचाये रखिये

[(दामन-ए-यार : प्रेमी/ प्रेमिका का आँचल), (ज़ीनत = शोभा, श्रृंगार, सजावट)]

फिर तो हम आपका हर ज़ुल्म गवारा कर लें
शर्त ये है कि हमे अपना बनाये रखिये

-तारीक़ बदायुँनी



Chitra Singh (Rare recording) - Private Mehfil



ek na ek shamma andhere mein jalaye rakhiye
subaH hone ko hai maahOl sajaaye rakhiye

jinke haathoN se hume zakm-e-niha pahunchi hai
wo bhee kehte hain ke zakhmoN ko chupaaye rakhiye

kaun jaane ke wo kis raahguzar se guzre
har guzargaah ko phooloN se sajaaye rakhiye

daaman-e-yaar ki zeenat na bane har ansoo
apni palkon ke liye kuch to bachaaye rakhiye

Phir to hum aapka har zulm gavaara kar len
Shart ye hai ki hamen apna banaye rakhiye

-Tariq Badayuni 

1 comment:

  1. कुछ और अशआर-

    फिर तो हम आपका हर ज़ुल्म गवारां कर ले,
    शर्त ये है कि हमे अपना बनाये रखिये..

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