Thursday 28 August 2014

Aapko dekhkar dekhta reh gaya/ आप को देखकर देखता रह गया

आप को देखकर देखता रह गया
क्या कहूँ और कहने को क्या रह गया

उनकी आँखों से कैसे छलकने लगा
मेरे होंठों पे जो माजरा रह गया

ऐसे बिछड़े सभी रात के मोड़ पर
आख़री हमसफ़र रास्ता रह गया

सोच कर आओ कू-ए-तमन्ना है ये
जानेमन जो यहाँ रह गया रह गया

(कू-ए-तमन्ना = कामना/ लालसा की गली)

-अज़ीज़ क़ैसी



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इसी बहर पर वसीम बरेलवी साहब की ग़ज़ल:

आपको देख कर देखता रह गया
क्या कहूँ और कहने को क्या रह गया

आते-आते मेरा नाम-सा रह गया
उस के होंठों पे कुछ काँपता रह गया

वो मेरे सामने ही गया और मैं
रास्ते की तरह देखता रह गया

झूठ वाले कहीं से कहीं बढ़ गये
और मैं था कि सच बोलता रह गया

आँधियों के इरादे तो अच्छे न थे
ये दिया कैसे जलता हुआ रह गया

-वसीम बरेलवी,

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Aapko dekhkar dekhta reh gaya
kya kahoon aur kehne ko kya reh gaya

unkee aankhon se kaise chalakne laga
mere honthon pe jo maajra reh gaya

aise bichde sabhi raat ke mod par
aakhri hum-safar raasta reh gaya

soch kar aao ku-e-tamanna hai ye
jaaneman jo yahan reh gaya reh gaya

Aziz Qaisi

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