Tuesday 26 August 2014

Door kahiN koi rota hai/ दूर कहीं कोई रोता है

अटल बिहारी वाजपेयी :- इमरजेन्सी के दौरान, जब मेरी तबीयत ख़राब हुई, तब मुझे बैंगलौर के जेल से ऑल इन्ड़िया मैड़िकल इन्सटीट्यूट में लाया गया । चौथी या पांचवी मन्ज़िल पर रखा गया था । कड़ा पहरा था । लेकिन रोज़ सवेरे मेरी आँख अचानक खुल जाती थी । कारण ये था कि रोने की आवाज़ आती थी । मैंने पता लगाने का प्रयास किया, ये आवाज़ कहाँ से आ रही है, किसकी आवाज़ है, तो मुझे बताया गया कि मैड़िकल इन्सटीट्यूट में रात में जिन मरीजों का देहांत हो जाता है, घर वालों को उनकी लाश सवेरे दी जाती है । सवेरे उन्हें ये जानकारी मिलती है कि उनका प्रियजन नहीं रहा ।

रोने कि आवाज़ मुझे विचलित कर गई । दूर से आवाज़ आती थी मगर हृदय को चीर कर चली जाती थी।

दूर कहीं कोई रोता है

तन पर पहरा भटक रहा मन,
साथी है केवल सूनापन,
बिछुड़ गया क्या स्वजन किसी का,
क्रंदन सदा करूण होता है ।

जन्म दिवस पर हम इठलाते,
क्यों ना मरण त्यौहार मनाते,
अन्तिम यात्रा के अवसर पर,
आँसू का अशकुन होता है ।

अंतर रोयें आँख ना रोयें,
धुल जायेंगे स्वप्न संजोये,
छलना भरे विश्व में केवल,
सपना ही तो सच होता है ।

इस जीवन से मृत्यु भली है,
आतंकित जब गली गली है,
मैं भी रोता आसपास जब,
कोई कहीं नहीं होता है ।

-अटल विहारी वाजपेयी



door kahiN koi rota hai
tan par pehra bhaTak raha man
saathi hai kewal soonapan
bichud gaya kya swajan kisi ka
kRandan sada kaRun hota hai

jaNm - diwas par hum iThlaate
kyon na maraN tyohaaR manaate
antim yaatra ke awsar par
aNsoo ka aShkun hota hai

antar roye, aaNkh na roye
dhul jayenge swapNa saNjoye
chalna bhare wishwa meiN kewal 
sapna hi to sach hota hai

is jeewan se mRityu bhali hai
aatankit jab gali-gali hai
maiN bhi rota aaspaas jab
koi kahiN nahiN hota hai
door kahiN koi rota hai

-Atal Bihari Vajpayee

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