Tuesday 26 August 2014

Huzoor aapka bhi ahtraam karta chaloon/ हज़ूर आपका भी एह्तराम करता चलूँ

हज़ूर आपका भी एह्तराम करता चलूँ
इधर से गुज़रा था सोचा सलाम करता चलूँ

(एह्तराम = आदर, सम्मान)

निगाह-ओ-दिल की यही आख़री तमन्ना है
तुम्हारी ज़ुल्फ़ के साये में शाम करता चलूँ

(निगाह-ओ-दिल = नज़रें और दिल)

उन्हे ये ज़िद के मुझे देखकर किसी को ना देख
मेरा ये शौक के सबसे कलाम करता चलूँ

(कलाम = बातचीत)

ये मेरे ख़्वाबों की दुनिया नहीं सही लेकिन
अब आ गया हूँ तो दो दिन क़याम करता चलूँ

(क़याम = ठिकाना, ठहराव, ठहरने की जगह, विश्राम-स्थल)

-शादाब लाहौरी


इसी ग़ज़ल के कुछ और अश'आर:

तुम्हारे हुस्न से जागे तमाम हँगामे
मैं दो ही लफ़्ज़ों में क़िस्सा तमाम करता चलूँ

मेरे क़लाम की 'शादाब' सादगी अच्छी
आवाम सुन के मज़े ले मैं नाम करता चलूँ


Huzoor aapka bhi ahtraam karta chaloon
Idhar se guzra tha soncha salaam karta chaloon

Nigaah-o-dil ki yahi aakhri tamanna hai
Tumhari zulf kay saaye mein shaam karta chaloon

Unhe yeh zid ki mujhe dekh kar kisi ko na dekh
Mera yeh shauk ke sabse qalaam karta chaloon

Yeh mere khwabon ki duniya nahin sahi lekin
Ab aa gaya hoon to do din qyaam karta chaloon

- Shadaab Lahori 

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