Wednesday 27 August 2014

Aye Khuda Ret Ke Sehra Ko/ ऐ ख़ुदा रेत के सहरा को

ऐ ख़ुदा रेत के सहरा को समंदर कर दे,
या छलकती हुई आँखों को भी पत्थर कर दे

(सहरा = रेगिस्तान)

तुझ को देखा नही, महसूस किया है मैंने,
आ किसी दिन मेरे एहसास को पैकर कर दे

(पैकर = चेहरा, मुख)

और कुछ भी मुझे दरकार नही है लेकिन,
मेरी चादर मेरे पैरों के बराबर कर दे

(दरकार = वांछित, अपेक्षित)

-शाहिद मीर

इसी ग़ज़ल के कुछ और अ श'आर:

दिल लुभाते हुए ख़्वाबों से कहीं बेहतर है,
एक आँसू कि जो आँखों को मुनव्वर कर दे

 (मुनव्वर = प्रकाशमान, प्रज्ज्वलित)

क़ैद होने से रहीं नींद की चंचल परियाँ,
चाहे जितना भी ग़िलाफ़ों को मोअत्तर कर दे

(मोअत्तर = सुगंधित, महकदार, ख़ुशबूदार)





Ae Khuda Ret Ke Sehra Ko Samandar Kar De,
Ya Chalakti Hui AankhoN Ko Bhi Patthar Kar De

Tujh Ko Dekha Nahi, Mehsus Kiya Hai Maine,
Aa Kisi Din Mere Ahsaas Ko Paikar Kar De

Aur Kuch Bhi Mujhe Darkar Nahi Hai Lakin,
Meri Chadar Mere PairoN Ke, Baraabar Kar De

-Shahid Meer

4 comments:

  1. तुझको देखा नहीं महसूस
    किया है मैंने।
    my best respect to this maestro couple

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  2. दिल लुभाते हुए ख़्वाबों से कहीं बेहतर है,
    एक आँसू कि जो आँखों को मुनव्वर कर दे..

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  3. क़ैद होने से रहीं नींद की चंचल परियाँ,
    चाहे जितना भी ग़िलाफ़ों को मोअत्तर कर दे..

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